इन पलकों पे कई सपने पलते हैं
उफ़क के दरीचों से झाँकती शुआएं
डालती है ख्वाबों में खलल..
जो अस्बाब है
गुजिश्ता लम्हों की,
पर ये सरगोशियाँ कैसी?
असर है
जो एक लम्हें के लिए..
शबनमी याद फिर से मुस्कराता है
पन्ने है जिंदगी के..जिनसे
सूर्ख गुलाबों की खुशबू जाती नहीं,
जिक्र करते हैं ..
इन हवाओं से जब
एक बूंद ख्यालों के
पलकों को नमी कर
फिर खलल डाल जाता है..
पम्मी सिंह✍
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गुजिश्ता-बिती बात,