Jan 18, 2018

बवाल..






सुर्खियों में बवाल भी बिकते हैं
जो इघर रुख करें..
तो दिखाए बवाल इनकी..
मुंसिफ की जमीर है 
सवालों के घेरों में 
हाकिम भी वही
मुंसिफ भी वही
सैयाद भी वही
शिकायत भी कि बरबाद भी वही,
सो बीस साल से पहले
जम्हूरियत के दम पे बवाल कर बैठै,
समय के साथ 
बदल लेते हैं लिहाज़
खोखले शोर की शय हर सिम्त 
मसीहा के नाम दोस्तों
सोची समझी..
ये कोई और खेल है
फकत सवाल है हमारी..
क्यूँ इस्तहारों के नाम पे 
आप बवाल  बेचते हैं?
               पम्मी सिंह..✍


चन्द किताबें तो कहतीं हैं..

दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका सरिता (फरवरी प्रथम) में छपी मेरी लेख "सरकार थोप रही मोबाइल "पढें। सरिता का पहला संस्करण 1945 में ...