अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
May 25, 2017
May 19, 2017
इन्सान में अख्यात खुदा..
हम खुद की ख्यालात लिए फिरते हैं कि
हर इन्सान में अख्यात खुदा बसता है
तो वो जो इन्सान है ,इन्सान में कहाँ रहता है?
जिनकी अलम होती शफ़्फाफ़ की
कश्तियाँ न कदी डगमगाई होगीं,
यहाँ हर शख्स कशिश में भी
सोने को हिरण में ढूंढ रहा
क्या पता जाने कहाँ है ?
वो इन्सान जिसमें खुदा होगा..
शायद..
वो जो खाली मकान है मुझमें,
वहाँ इन्सान में खुदा रहता होगा..
इस लिए 'वो 'सदाकत से गुम है,बुत है
खामोशी से फकत निगाह-बाह करता है..
हम खुद की ख्यालात.......
©पम्मी सिंह
Subscribe to:
Posts (Atom)
लेखकीय रूप
अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...

-
कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
-
तुम चुप थीं उस दिन.. पर वो आँखों में क्या था...? जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की, तमाम गुजरे, पलों के...
-
क्या से आगे क्या ? क्या से आगे क्या ? आक्षेप, पराक्षेप से भी क्या ? विशाल, व्यापक और विराट है क्या सर्वथा निस्सहाय ...