Apr 16, 2021

गुलाबी यादे..

" रब की बख्शी गई उम्र के बागीचे में से

मैंने एक आज इक और उम्र चोरी की है..

क्या हुआ जो चाँद तारे दामन में न गिरें

अपने सितारों से खूब दिलजोई की है।"...



ओ मेरी जिदंगी हर दिल्लगी के लिए शुक्रिया

यादे मुड़ रही उस गली में जहाँ माँ, मौसी की बोलियां कभी थी ..

'एई चकभामा चक चक करेलू.."

 यादों की शज़र से फिर गिरा पत्ता 

 एक कोंपल फिर उग रहा.. 

बहनों संग खेलना बोरी बिछा कर बाल काट देना, कभी 

माचिस जला कर बेसिन में भरे पानी डूबों देना, बिन बात के छोटी बातों पर हँसते जाना,

खड़ी जीप (राँची,कुसाई कालोनी B/7.. Quarter r जीप न० BRV 5192) में सब कजिन पिन्टू, सिन्टू, और हम सब बहन अगल, बगल के दोस्त ) स्टियरिंग घुमा घुमा कर पूरी दुनिया घुम आते..इतना बिजी कि उफ़ निकल जाये।

नकल करने में माहिर.. गाना सुनाने के लिए कोई बोले तो..

आजा सनम मधुर चाँदनी में हम...तुम मिले तो जिया...

पूरा का पूरा सुना दी..जब छठी क्लास में.. मम्मी बोली तुम ये गाना कहाँ से सीखी वो भी पूरा..

बड़ा नखरे दिखा कर बताई..बस से जब घर आतें है तब पिछे वालीं सीट पर बड़ी क्लास मतलब (10वी) दीदी लोगों गाती हैं तो मैं भी सुन कर सीख गई...

दूसरी बार गाना.. मौसेरी बहन के  आरा शहर के कर्जा गाँव में कांति दी के शादी में..एकदम अलग..हाथी, घोड़ें की दौड़  हुई थी.. खूब मज़ा आया.. हमलोग छत पे बैठ कर गाना की फरमाइश हुआ.. बम्बई से कुछ रिश्तेदार आये थे.. सब बोले चलो गाना सुनाओं हम में से किसी को गाना नहीं आता तो तुम जो भी सुनाओगी हमलोग से बेहतर ही..फिर अपनी सेफ्टी जोन देख फिर गाई..कितने भी कर ले सितम ,,हँस हँस कर सहेगें हम..सनम तेरी कसम...

फिर सनम को दो सेकंड तक बोल कर कम्पीटीशन लगाते रहे..

तीसरी बार फिर ऑन डिमांड पर गाना गाई..

शायद मेरी शादी का ख्याल  दिल में आया है...नवी कक्षा में थी

तब..

मम्मी फिर अलग लहजे में बोली.. अभी तहार बियाह हो ता..गईबू ढेर गाना ..फिर तो जो चुप लगाई कि बस..

कई वर्षों बाद ..पैर का ऑपरेशन हुआ तो मम्मा बेड पर थी..मैं  काम निपटाते हुए गुनगुना रही ...सुबह सुबह...आज हम इश्क इजहार करें तो क्या हो... 

जान पहचान से इनकार करें तो क्या हो..

तो बोलीं ई कौन सा गाना  कि शायरी गा

 रही हो..तनि फिर से गाव तो.. मैं बोली आप तो ये पिक्चर जरूर देखी होगी.. हम्म.. हाँ..आगे गा..अच्छा लगता है.. घर में गुनगुनाती औरतें , चेहरे की हँसी माहौल बना देता है। ऐसे ही हँसों और गाव..तुमलोग को देख हमको सुकून मिलता है। बेकारे डाट डपट दिये थे..

वैसे बचपने की बातें माँ, पापा के ज़बान से जादा अच्छी लगती हैं। हैं.. न..

 जानती हूँ माँ, पापा और आप सब देख रहे हैं मुस्कराते हुए, 

 जो छू कर गुजर रही सीली

 हवाओं की तरह सहलाते हुए,

 पिघले मोम की तरह ढल रही हूंँ समय के साचे में

कुछ शिकायतें कुछ जिद्द बड़ी अपनी सी पर..

 कोई तो है अंदर जो संभाले हुए है इसलिए

 ओ मेरी जिंदगी तेरी इस नज़र का शुक्रिया।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..


कुछ अलग सी दिलकशी सी..सुने..

समझे तो जरुर🙂



34 comments:

  1. बहुत ही हृदयस्पर्शी संस्मरण!!! इन समस्त स्मृतियों को नमन!!!

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    1. तहेदिल से शुक्रिया भावात्मक सराहनीय शब्दों के लिए।
      सादर।

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  2. लाडली बिटिया सदैव प्यारी रहें

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    1. आभार दी..
      आज तो दिन ही बन गया।

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  3. शायद यह आपके जन्मदिन का अवसर है। एक संस्मरण और बहुत कुछ है आपके आँचल में।
    साझा करने के लिए धन्यवाद आपका।
    जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई स्वीकार करें।

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    1. शब्द की पहचान आपसे कैसे छुप सकती थी।
      शुक्रिया.. शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना रविवार १८ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. बहुत अच्छा और मर्मस्पर्शी लेखन...।

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    1. शुभेच्छा संपन्न शब्दावली के लिए आभार।

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  6. न जाने कितनी ही यादें जुडती रहती हैं ज़िन्दगी में ... कुछ इतनी मन के करीब होती हैं कि संस्मरण ही बन जाती हैं .... सुन्दर ,,,

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    1. हाँ..दी, ऐसे ही छोटी बड़ी बहुत से किस्से है..
      कभी कभी पीछे मुड़कर देखना अच्छा लगता है।
      हृदयतल से आभार प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  7. "अभी तहार बियाह हो ता..गईबू ढेर गाना ..फिर तो जो चुप लगाई कि बस."

    पुराने दिनों की याद ताज़ा करती.... दिल को छू गई आपकी संस्मरण। हमारे जमाने में कहा इज़ाज़त थी ऐसे गाने-बजाने की वो भी "बिहार में "
    माँ के यही शब्द सुनने को मिलते थे। सादर नमन पम्मी जी

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  8. हाँ..अपनी सी बातें और यादें, गाना और डाँस पर तो बस पुछिये मत..पर अब सब चलता है। वो भी अच्छा था ये भी अच्छा है..🙂
    बहुत अच्छा लगा आपकी प्रतिक्रिया देख।
    शुक्रिया।

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  9. स्मृतियों की हवा में आप भी बहीं और हमें भी बहा ले गईं पम्मी जी। बहुत अच्छा अहसास हुआ पढ़कर।

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  10. यादों का बाइस्कोप। .शानदार।

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  11. नए अंदाज़ से लेखन ... किसी डायरी की तरह बहते हुए जज्बात पिरो दिए आपने ...

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    1. शुभेच्छा संपन्न टिप्पणियों के लिये धन्यवाद

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  12. खूबसूरत लेखन \हार्दिक शुभकामनायें

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    1. शुभेच्छा संपन्न टिप्पणियों के लिये धन्यवाद

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  13. बहुत ही सुन्दर

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  14. आपकी लिखी कोई रचना बुधवार , 12 मई 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  15. वक़्त चला जाता है मुसाफिरों की तरह
    यादें वहीं रह जाती है राहों की तरह!
    खूबसूरत रचना हमारे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है🙏🙏🙏

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  16. सही कहा पहले कहाँ नाचने-गाने दिया जाता था बेटियों को..और फिर समय के साथ साथ परिवर्तन....
    ई कौन सा गाना कि शायरी गा रही हो..तनि फिर से गाव तो.. मैं बोली आप तो ये पिक्चर जरूर देखी होगी.. हम्म.. हाँ..आगे गा..अच्छा लगता है.. घर में गुनगुनाती औरतें , चेहरे की हँसी माहौल बना देता है। ऐसे ही हँसों और गाव..तुमलोग को देख हमको सुकून मिलता है। बेकारे डाट डपट दिये थे..
    परिवर्तन की इस बयार में कितना कुछ बदला हम भी बदले और साथ रह गयी वो यादें।
    हुत ही हृदयस्पर्शी संस्मरण।

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  17. प्रिय पम्मी जी, खेद हुआ देर से आ पाईं। बहुत ही गुलाबी यादें, गुलाब सी महकती। और अभी तो मैं जवान हूं ---- ने तो समां बांध दिया। बहुत बहुत आभार इस सुन्दर संस्मारणात्मक। लेख के लिए।

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  18. शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।

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अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...