नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
इस दीवाली कुछ अच्छा
सोचते हैं
ज़ीस्त के अदवार
बेसूद न हो
' तमसो मा ज्योतिर्गमय 'संदेश को ज्योतिर्मय कर
हर पलक्षिण को दीपों
से आलोकित करते हैं,
किताबों की बातें
किताबों में ही न हो
सुख, संतुष्टि,
सद्भावना रूपी जौं को प्रज्जवलित करते हैं,
हसद, हमेव, हब्स को
दूर कर
शबोरोज़ राहों को
मंजिल के करीब लाते हैं,
चलो... इन ख्यालो की
बस्ती से निकल कर
सू-ए-गुलज़ार रूख
मोड़ते हैं,
कुछ इस तरह ...
हर आसताँ को दीपमय
कर रौशन करते हैं.
©पम्मी सिंह
(हसद-ईष्या,हब्स-रूकावट,हमेव-अंहकार,आसताँ-चौखट,सू-ए-गुलज़ार-बाग
की तरफ)