Oct 29, 2016

इस दीवाली कुछ अच्छा सोचते हैं..

या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।


इस दीवाली कुछ अच्छा सोचते हैं
ज़ीस्त के अदवार बेसूद न हो

' तमसो मा ज्योतिर्गमय 'संदेश को ज्योतिर्मय कर
हर पलक्षिण को दीपों से आलोकित करते हैं,

किताबों की बातें किताबों में ही न हो
सुख, संतुष्टि, सद्भावना रूपी जौं को प्रज्जवलित करते हैं,

हसद, हमेव, हब्स को दूर कर
शबोरोज़ राहों को मंजिल के करीब लाते हैं,

चलो... इन ख्यालो की बस्ती से निकल कर
सू-ए-गुलज़ार रूख मोड़ते हैं,

कुछ इस तरह ...
हर आसताँ को दीपमय कर रौशन करते हैं.
                                   ©पम्मी सिंह


(हसद-ईष्या,हब्स-रूकावट,हमेव-अंहकार,आसताँ-चौखट,सू-ए-गुलज़ार-बाग की तरफ)

Oct 5, 2016

अफियत की वक्त मुक़रर्र कर दो..


अाफियत की वक्त मुक़रर्र कर दो..

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चंद आफियत की

वक्त मुक़रर्र कर दो..

पुरखुलूस की ताब से ही

गुज़रती है जिन्दगी..

हर लबो पर तबस्सुम को आबोताब कर दो..

साजिशें थी दहर के चांद सितारो की

वर्ना खुशियाँ झाँकती हर दरीचों से

इस तरह ही हर पल को ढूढती

एक पल को गुज़ार दो



चंद आफियत की...
                ©पम्मी सिंह 



चन्द किताबें तो कहतीं हैं..

दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका सरिता (फरवरी प्रथम) में छपी मेरी लेख "सरकार थोप रही मोबाइल "पढें। सरिता का पहला संस्करण 1945 में ...