तुम चुप थीं उस दिन..
पर वो आँखों में क्या था...?
जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की,
तमाम गुजरे, पलों के फ़साने दफ़्न कर..
जिंदगी की राहों से जो गुज़री हो
जो ज़मीन न तलाश कर सकी ,
मसाइलों की क्या बात करें...
ये उम्र के हर दौर से गुज़रती है.
अजीब कश्मकश थी...
हर यादों और बातों से निकल कर भी
अतीत के मंज़र को ढूँढती थी वो आँखें..
पम्मी सिंह