Mar 7, 2024

गर्द-गर्द शहर...

 




बदल रहे हैं आजकल निसाब मौसमों के
सांस भी उलझ रहा, हिसाब मौसमों के,
ताल्लुक ग़र हमारा टूटें तो ये याद रखना-
गर्द-गर्द शहर की नुमाई हम ही,जवाब मौसमों के।
तृप्ति 
(निसाब-आधार,पूंजी)

हयात के तगामशी में गुम हुए इस कदर, 
ठहराव में शोरिश, दूर साहिल दिखती हैं,
गुमां सी हो चुकी थी कि... हम बहुत कुछ संभाल रहे,
दयार ए जात पे...फिर वही लकीरें,काविशे दिखती है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'

(हयात -जीवन, तगामशी -भागदौड़, शोरिश -उपद्रव, काविश-
खोज, तलाश, जिज्ञासा)



 

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