ये है हमारी रूदाद..
शनासाई सी ये पच्चीस वर्ष शरीके-सफर के साथ
सबात लगाते हुए
असबात कभी अच्छी कभी बुरी की..
ताउम्र बेशर्त शिद्दत से निभाते रहे..
सोचती हूँ ये जिंदगी रोज़ नई रंगो में ढलती क्यूँ हैं..
कई दफ़ा कहा..
कभी इक रंग में ढला करो..
गो एक हाथ से खोया तो दूसरे से पाया
हादिसे शायद इस कदर ही गुज़र जाती है..
शादाबों का मलबूस पहन
तरासती हूँ उस उफक को जो धूंध से परे हो..
मामूल है ये जिंस्त हर ख्वाब-तराशी के लिए
सबब है उल्फत की जिनमें सराबोर है चंद
मदहोशियाँ,सरगोशियाँ,गुस्ताखियाँ और बदमाशियाँ
वाकई.. पर मौत को वजह नहीं बनाने आई हूँ।
©पम्मी सिंह
(रूदाद-story,शनासाई-acquaintances,
सबात-stability,असाबात-दावा,गो-यद्यपि
शादाबों-greenblooming,मलबूस-पोशाक dress,उफक-क्षितिज, मामूल-आशावादी,सबब-कारण, उल्फत-प्रेम)
http://www.bookstore.onlinegatha.com/bookdetail/368/kavya-kanchhi.html