Jan 13, 2022

टप्पे/माहिया



टप्पे/माहिया

(नवा वर्ष, ठंड,मकर संक्रांति, लौहड़ी)


जरा शॉल तो ओढ माहिया ( २)

नवा साल है जरूर

इत उत न डोल माहिया


हट जा परे सोनिये (२)

छोड़ जरा.. घड़ी दो घड़ी

नवा साल मनाना है।


तू तो उड़ती पतंगा है (२)

शोलों की है यहाँ झरी

आज तो मन मलंगा है।


आसमां की तरफ देखो ( २)

मौसमों की ताबों में

आस्ताँ  न भुलाया करों


तू बड़ा ही सयाना है २

भूलों गम घड़ी- दो -घड़ी

दो पल का जमाना है।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️




Jan 7, 2022

टप्पे/ माहिया




टप्पे/माहिया

अफ़सानों की बातें
आँखों के वादे
क्यूँ नहीं समझ पातें

तू बड़ा ही सयाना है
इत उत बातों से
तू क्यूँ हाय रिझाता है
चल...
हट जा परे सोनिये
हँस दे घड़ी दो घड़ी
दो पल का जमाना है

पीर हिया की (मुझे) दे.. दे..
हाथ बढ़ातीं हूँ
इब रोज आना जाना है

ख्वाबों में मत आना
अरदास करूँ.. रब से 
तेरे नाल  जाना है।
  पम्मी सिंह ‘तृप्ति’.✍


Jan 3, 2022

शब्द है वहीं जानी पहचानी सी ..





लीजिए 21 वी सदी के बाईसवें साल में हमारे मुस्कराने की वजह ये ही बनी..

 "शब्द है वहीं जानी पहचानी सी जरूर कुछ बात है,

शहरियत है,तर्बियत भी मानी सी जरूर कुछ बात है।"

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

GLOBAL  RESEARCH JOURNAL

(peer-reviewed  (refereed)  journal)

ग्लोबल रिसर्च कैनवास

(द्विभाषी त्रैमासिक शोध पत्रिका ) में प्रकाशित हमारी भी

शब्द-

 निधि पेज न०8-10 ...विषयक - ,'देश की स्वाधीनता का वर्तमान स्वरूप'

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अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...