भीड़ तंत्र पर बात चली हैं,एक छत के आस में
बेरोजगार भटके युवकों की राह बदली हैं,
आह,वाह..अना,.अलम,आस्ताँ के खातिर
आजकल हुजूम के कारोबार की हवा खूब चली हैं,
दर -ओ-दम निकाल कर ,बे-हिसाब बातों पर
शानदार इबारतें में ,शान्ति की राह निकली हैं,
शहरों के तमाम लफ़्जी बयां के मंजर देख
आँखों पर कतरन बाँध, अब नई राह निकली है,
बिसात किसी और की ,शह ,मात के जद़ में
चंद लोगों को मोहरा बनाने की बात चली हैं,
कलम भी तेरी ,दवात भी तेरी,तजाहुल भी तेरी
अब हर बात पे सफ़हे भी लाल हो चली हैं,
रंग बदला,मिजाज बदला और वो हुनर निखरा
जहाँ पत्थर-दिल इंसानों की फितरत खूब बदली हैं,
एक मुक्कमल सहर के खातिर,हवाओं के रूख भाप
आदम की किस्मत को फ़र्क करने की तस्बीह खूब चली हैं,
लाजिमी हैं सियासत हैं ..और
सियासत में, सवाल,बवाल,मलाल की ही चली हैं,
पर जब बात यूँ निकली तो सवाल हैं ..
इबादत न सही पर क्या?
कभी दिलों के मौसम बदलने वाली बात चली हैं. ..
पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍
(तस्बीह-जप करने की माला, अना-स्वाभिमान,अलम-दुख,शोक,तजाहुल-जान बूझकर अनजान बनना, सफ़हे -पन्ना,आस्ताँ-चौखट,
ReplyDeleteरंग बदला,मिजाज बदला और शहर की किस्मत के खातिर इंसानों ने फितरत बदली है
आदम की किस्मत को फ़र्क करने की तस्बीह
खूब चली है
बहुत ख़ूब... वाह
आभार अमित जी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धन करती सी ..।
Deleteसुंदर!!
ReplyDeleteजी,आभार।
Deleteबहुत खूबसूरत ..... लाजवाब 👌👌👌
ReplyDeleteउत्साहवर्द्धन करती प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Delete
ReplyDeleteरंग बदला,मिजाज बदला और शहर की किस्मत के खातिर इंसानों ने फितरत बदली है वाह बेहतरीन रचना 👌👌👌👌
ब्लॉग पर उपस्थिति एवम् टिप्पणी हेतु धन्यवाद।
Deleteदर -ओ -दम निकाल कर शान्ति की राह निकली है!!!
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक रचना प्रिय पम्मी जी | सियासत ये सब नहीं करेगी तो सफल कैसे होगी ? सियासत इन्ही प्रपंचों से तो सजती है | बेहतरीन लेखन के लिए हार्दिक बधाई आपको |
बहुत बहुत धन्यवाद रेनू जी..आपकी विस्तृत अवलोकन के साथ प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह बढाती है।
Deleteसियासत का खैल है भईया नाचे सब कोई ताता थैया एक अदृश्य ऊंगली पर नाचते सैकड़ों मूरख ना कोई उद्येश्य ना मंजिल सिर्फ ताक धिनी और अराजकता।
ReplyDeleteसार्थक रचना पम्मी जी ।
This comment has been removed by the author.
Deleteआपकी शब्दों द्वारा रचना को विस्तार देती प्रतिक्रिया सबसे अलग है साथ ही उत्साह बढाती है।
Deleteधन्यवाद।
पहली तीन पंक्तियां
ReplyDeleteभीड़ तंत्र पर बात चली है
बेरोजगार भटके युवकों की राह बदली है
आह,वाह..अना,.अलम के खातिर हुजूम की खूब चली है
पूरे नज़्म की सार कहता नज़र आता है
सादर
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार दी।
Deleteवाह वाह पम्मी जी खूब शब्दों को ढाला बातों में....बेहतरीन ये गुफ्तगू लाजमी है !
ReplyDeleteजी..आभार
Deleteजो शब्द और मर्म की तह में जा कर एक और गुफ्तगू चली।
आज के हालात और राजनीति पे सटीक तपसरा है ये लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरती से सच को बयान किया है आपने ...
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु ह्रदय से आभार।
Deleteसटीक चिंतन प्रस्तुत करती समसामयिक रचना. चिंता की बात है आज बुद्धिजीवी वर्ग ऐसे ज्वलंत मुद्दों पर ख़ामोश है. लिखते रहिये. बधाई एवं शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रवीन्द्र जी.सदैव उत्साह बढाती प्रतिक्रिया।
Deleteबहुत उम्दा सृजन
ReplyDeleteजी..शुक्रिया।
Deleteवाहह...बहुत बढ़िया...भीड़तंत्र हर तंत्र पर भारी है।
ReplyDeleteसुंदर भाव और उर्दू शब्दों.के प्रयोग ने रचना निखार दिया है।
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार श्वेता जी।
ReplyDeleteसियासत पर बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteआभार सर जी..आप जैसे वरिष्ठ सुधीजनों द्वारा टिप्पणी बहुत मायने रखती है।
Deleteधन्यवाद।
इबादत न सही पर क्या ?कभी दिलों के मौसम बदलने वाली बात चली है. ..उर्दू शब्दों का बहुत खूबसूरती से प्रयोग किया है आपने पम्मी जी , बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार वंदना जी सुंदर प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteधन्यवाद
वाह बहुत खूब, भीड़ तंत्र पर जो बात चली है, उसको आपने झकझोर देने वाले अंदाज में बयां किया है। धन्यवाद आपका।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteहालाते हाल पर बहुत उम्दा बयां ..
ReplyDeleteजी, आभार
Deleteसियासत से हावी रहती है सब पर, ऐसे में किसे खबर आम लोगों की
ReplyDeleteबहुत खूब!
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteजी,धन्यवाद
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