अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
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अनकहे का रिवाज..
जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...
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पापा .. यूँ तो जहां में फ़रिश्तों की फ़ेहरिस्त है बड़ी , आपकी सरपरस्ती में संवर कर ही ख्वाहिशों को जमीं देती रही मग...
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हर तरह से खैरियत है ,होनी भी चाहिए, गर, जेठ की दोपहरी में कुछ खास मिल जायें, तो फिर क्या बात है..!! पर.... कहॉं आसान होता है, शब्दों में ब...
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ख्वाबों की जमीन तलाशती रही अर्श पे दर्ज एहकाम की त लाश में कितनी रातें तमाम हुई इंतजार, इजहार, गुलाब, ख्वाब, वफा, नशा उसे पा...
खूबसूरत सदा-ए-जज़्बात
ReplyDeleteDhanywad, ji ye jajbat hi kavya ka murt rup leti hai..
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहरा अहसास लिए हई रचना। बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहरा अहसास लिए हई रचना। बहुत खूब।
ReplyDeleteJi, dhanywad
Deleteशानदार लेखनी !
ReplyDeleteJi, pratikriya hetu abhar..
Deleteवेहतरीन भावों की वेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवेहतरीन भावों की वेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteJi, pratikriya hetu abhar:)
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर प्रस्तुति
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