May 8, 2019

पुरानी गलियाँ..



दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका सरिता मई( प्रथम)1995अंक..


सरिता के मई प्रथम अंक में मैं ने आपकी समस्या पढ़ी. मुझे महसूस हुआ कि आप की समस्या इतनी ज्यादा गंभीर नहीं है कि इसे सुलझाया ना जा सके .आपने लिखा है कि आपकी मां का स्वभाव अच्छा नहीं है .इस कारण आप दुखी रहती हैं और आत्महत्या जैसे ही विचार आपके मन में उठने लगते हैं आगे आप लिखते हैं कि आप मनोवैज्ञानिक बनना चाहती हैं बन पाएंगीं या नहीं.
सबसे पहले मैं आपको यही विश्वास दिलाना चाहती हूं कि दुनिया में कोई भी काम करना मुश्किल नहीं है .सिर्फ आत्म बल की आवश्यकता होती है जिसकी आप में कमी है आप अपने में आत्म बल पैदा कीजिए और खुश रहने की चेष्टा कीजिए . मनोवैज्ञानिक बनने का प्रथम प्रयास आप अपने घर से ही शुरू कर सकती हैं .
आपने अपनी मां के चिड़चिड़े और बुरे स्वभाव को तो देखा है पर क्या आपने इसके कारण को जानने की भी कभी चेष्टा की है ? हो सकता है आपकी मां को जीवन में किसी खास कमी का सामना करना पड़ता हो ,जैसे कोई शारीरिक या आर्थिक कमी अथवा फिर घर वालों से प्यार की कमी जिसमें आप के पिता का भी अहम रोल हो सकता है ,ऐसी कमियों में से किसी भी कमी के कारण उनका बर्ताव आपके पिता के साथ अच्छा ना रहता हो जिसे वह उन से लड़ झगड़ कर कह कभी लेती है .
आप कहती हैं कि आपके पिता ठंडे स्वभाव के हैं और वह चुप रहते हैं. यह भी तो हो सकता है कि आपके पिता उन कमियों को दूर ना कर पाने के कारण चुप रहते हो जिससे आपकी मां और भी चिढ़ जाती हों.
आपकी उम्र 16 साल है और इस उम्र में तो लड़कियां अपनी मां को एक सखी के रूप में पाती हैं ,और एक आप हैं जो अपनी मां से नफरत करती है .सबसे पहले आप अपने आप को खुश रखने का प्रयास कीजिए और अपने मां से हमदर्दी करना शुरू कीजिए. शुरू शुरू में हो सकता है कि आपको थोड़ा कठिन लगे परंतु धीरे-धीरे आप अवश्य ही अपनी मां का विश्वास जीत लेंगी.आप के हमदर्दी उनके स्वभाव में परिवर्तन ला सकेगी.
आप अपनी मां के परेशानी जान कर अपने पिता से भी सलाह कर सकती हैं. उनसे मिलकर ही आप अपनी मां की परेशानी को दूर कर सकती है.
कभी कभी कोई परेशानी ऐसी भी होती है जिससे एकदम से दूर करना संभव नहीं होता जैसे कि आर्थिक या शारीरिक परेशानी . इसके लिए अगर आप सब मिलकर एकजुट हो जाएंगे तो दुख, तकलीफ बांटी जा सकती है. और धीरे-धीरे दूर भी की जा सकती है .एक प्यार ही ऐसी चीज है जिससे परेशानी की घड़ियों में राहत मिल सकती है .
फिर देखिएगा कि आपके भाई में भी स्वयमेव परिवर्तन आ जाएगा क्योंकि इस वक्त आपके घर का वातावरण ही कुछ ऐसा है कि जिसमें आप मायूस रहती हैं और आपकी मां चिड़चिड़ी जब यह कमियां दूर होंगी तो आपके भाई को भी घर का असली आनंद मिलेगा .
इसलिए मेरी राय यही है कि आप अपने में मनोबल बढ़ा कर अपने घर की स्थिति को संवारें.
पम्मी सिंह

Apr 23, 2019

विश्व पुस्तक दिवस ..मुक्तक





मुक्तक
१.
किताबों की सोहबत ही अच्छी रही
मोहब्बत की कहानियां इनमें मरी नहीं
छिपायें अदीबों ओ तालीम की गौहर- 
खामोश,पर बहुत कुछ बोलती रही


२.
किताबों की सोहबत में तकदीर संवरती है..
कातिबों के क़सीदे से तहरीर निखरती है
औहाम की तंग गलियों से निकाल-
मुक्कमल किरदार की तश्वीर संवरती है।
                            पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

(औहाम भ्रान्ति, धोखा, भ्रम)

Apr 6, 2019

सायली नवसंवत्सर






सायली 
१.

नवसंवत्सर
मांगल्य उत्सव,
सात्विकता शक्ति की
उपासना, अंतर्मन
अह्ललादित।


२.

संकल्पों 
का उत्सव
विक्रम संवत, नूतनता
के क्षण
उकेरता।


३.

चन्द्रमासी
चैत से
आर्यवर्त की पुण्य
धरा सजने
लगी।

४.

कलुष
तमस हर,
सिंदूरी भोर लिए
सुखद नवसंवत्सर
आया।



पम्मी सिंह 'तृप्ति..✍

Mar 20, 2019

फागुनी,बसंत दोहे


फागुुनी,बसंंत

दोहे


नेह के द्वार खोलती, होली का त्योहार।
रिश्तों में उल्लास भरती, भावों का व्यवहार ।।

मदमस्त मलंग की टोली, गाते फाग बयार।
गुलाल उड़े गली गली, छाते बसंत बहार।।

वीणा की तार छेडे़,सुनाय राग मल्हार।
प्रीत रीत की राग से, गाय फागुन बहार।। 



राधिका हुई बांवरी, रंगें अंग प्रत्यंग।
फगुनाहट की आहट, तन मन हुआ मलंग।।


रंग बिरंगी ओढणी, लहरा कर बलखाय।
पपीहे के कुहूक से, अमराई इतराय ।।

©पम्मी सिंह'तृप्ति'

Mar 10, 2019

जानते सब हैं मानते कितने हैं..

साहित्यिक पत्रिका स्पंदन में प्रकाशित आलेख..

जानते सब है मानते कितने हैं..

समय के साथ हमारे विचारधाराएं भी बदल रही है, तो कुछ बदलने को आतूर है, तमाम सोच जो सामाजिक, राजनीतिक ,पारिवारिक से संबंध रखती है, 
धीरे – धीरे बदल रही हैं , क्योंकि विचारों के साथ हालातों में  भी बदलाव आ रहा है। देशभर में कई चर्चाएं , विचारों के संदर्भ में गतिशीलता प्रदान कर नई सोच की ओर बढी जा रही है। इसी संदर्भ में स्त्रियों और दलितों की चर्चा भी सर्वोपरि है। जिसके संदर्भ में जानते सब है पर मानते कहँ है। ये तबका समाज का अभिन्न अंग होने के बावजूद सदा से ही समाज के साथ अपने परिवार में भी स्थान के लिए संघर्षरत रहा है।
 मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको - अदम गोंडवी जी की रचना हमारे चक्षुओं को खोल एक विचार को उद्वेलित करती है..कि 
“आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी..”
यही कमोबेश हाल स्त्रियों को है ,आज के आधुनिक दौर में भी स्त्रियों को वह सम्मान नहीं मिल पाया, जिसकी वह हकदार है। दलित और स्त्रियों के ऊपर हो रहें अत्याचारों को पर भी ध्यान आकर्षित किया गया है। समाज में ब्राह्मण, शूद्र और पुरुष ,स्त्री के बीच ऊँच नीच का आपसी मतभेद तो राम सीता के समय से ही चला आ रहा है, परेशानी इस बात से कि आज के वर्तमान युग में भी इसे अभी बढ़ावा मिल रहा है। तमाम नए- नए कानूनों के बनने पर भी इस तरह के हादसों में कोई कमी नहीं आ रही है। रोज ही हम समाचार पत्र के माध्यम से नए-नए घटनाओं से वाकिफ होते हैं, आज फलना जगह सवर्णों ने दलितों को मारा पीटा तो दलितों ने सवर्णों को आग लगाया, इसी तरह लड़कियों को भी कहीं भी पकड़ कर उनके साथ व्याभिचार कर नीत आजीवन पीड़ा का अंजाम दे रहे हैं। तमाम सख्त कानून होने के बावजूद इस तरह के अपराध थमने का नाम नहीं ले रहा। जो समाज में बुराइयों को फैलाकर समाज को खोखला करने का काम कर रहा है। 
दलित ,महिलाओं को बाहर से लेकर घर की चाहरदीवारी तक हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.। प्रकृति ने लोगों के बीच अंतर नहीं किया तो ,फिर यह किन लोगों के सोच का प्रतिफल है । मानव सभ्यता का विकास होने, धर्म का परिचय  बढ़ाने, मातृ सत्तात्मक समाज के पुरुष सत्तात्मक होने के साथ-साथ महिलाओं पर जुल्म की कहानियां भी बढ़ती जा रही है। भले ही औरतों ने वैश्विक स्तर पर अपनी बुलंदियों को झंडे गाड़े हैं मगर पक्षपात हमेशा की तरह ही बदस्तूर जारी है। हर जगह परेशानियों आ रही है। कनाडा के युवा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक लेख के जरिए व्यक्त किए जिसमें कुछ ऐसे तथ्य लिखे जो आज के दौर की महिलाओं के लिए सटीक और अनुकरणीय है उन्होंने लिखा , यह बहुत हैरान करने वाली बात है कि अब भी समाज में गैर बराबरी और लिंग के आधार पर भेदभाव मौजूद है यह मेरे लिए पागल करने जैसा है कि बेहद होशियार और दूसरों के लिए हमदर्दी रखने वाली मेरी बेटी एक ऐसी दुनिया में बड़ी होगी यहां हर खूबी होने के बावजूद कुछ लोग उस बात तो उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लेंगे उसे केवल इसलिए नाकार देंगे क्योंकि वह लड़की है सबसे बड़ी अच्छी चीज जो हमें हमारी बेटी के लिए कर सकते हैं वह है उसे यह सिखाना कि वह जो है जैसी है वैसी ही बेस्ट है उसके पास कुछ खास करने की क्षमता है जिसे कोई उससे छीन नहीं सकता बेटी की परवरिश क्यों लेकर मेरा खास नजरिया है मैं चाहूंगा कि मेरे बेटे उस खास तरह की मर्दानगी दिखाने के दबाव में ना आए जो हमारे आस पास के पुरुषों और दूसरे लोगों के लिए बहुत घातक रहा है मैं चाहता हूं कि वह जैसे हैं खुद को लेकर सहज हो जाए और बताओ नारीवादी बड़े हो यह बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों को नारीवाद के सही माने बता सके मुझे उम्मीद है लोग सिर्फ अपनी बेटियों को ही नहीं सिखाएंगे बल्कि बेटे को भी समझाए आज के दौर में दोनों जनों के बीच बराबरी क्यों जरूरी है कोई भी रिश्ता यह समाज के उत्थान पवित्रता तभी कायम रह सकती है जब हम एक दूसरे को सम्मान करें एक दूसरे के वजूद को मानदेय इसके लिए समाज को भी कुछ कदम उठाने चाहिए सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था में हम बच्चों को खासतौर पर लड़कों को समानता के बारे में बताएं जो निश्चित रूप से एक बेहतर समाज बनाने में बेहतर कदम होगा..

धर्म और जाति के साथ समाजिक व्यवस्थाओं का दबाब भी बना हुआ है। पुराने हालातों मजबूरियाँ को छोड़ समानता, सम्भावाना की तलाश आवश्यक हो गई है।आगें भी चर्चाएँ होती रहेगीं क्योकि ये वर्ग विशेष है। खण्डों में विभक्त हो संघर्षो के साथ अपने अस्तित्व बनाएँ रखने के अंतरंग दस्तावेज है। समय के साथ अधिकार की बात उठने लगी है। और हम जानते सब है पर.. मानते कितने हैं ?
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..
(दिल्ली)

Feb 14, 2019

विनम्र श्रद्धांजलि (14 फरवरी2019)













अर्श पे महशर की घड़ी हैं
फ़र्द हैरान,तिफ़्ल की लड़ी हैं
 बंद करों वाइज़ शोर को
 मुनासिब फैसले की घड़ी हैं।

               पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍

(महशर-प्रलय,फ़र्द-सूची, तालिका
वाइज़ -नसीहत ,तिफ़्ल-बच्चें)

Jan 28, 2019

मुक्त नज़्म







साहित्यिक पत्रिका "अर्य संदेश " विगत १० वर्षो से  
साहित्यिक क्षेत्र में नित्य  सलग्न हैं..
मेरी प्रकाशित रचना..

मुक्त नज्म

शाह सियासत उसूलों पर भी रंग बदलती है
निस्बत पत्थरों से रहमत का न तकाज़ा रखों,


निजाम- ए- शाह की जो बढ़ी बदकारियां
मुल्क के हालात पर आँखें खुली रखों,

सियासत गर वहशत, नफ़रत पर मुस्कराने लगे
आँखों में सवाल के संग मुठ्ठी ताने रखों,

दहकानों को मयस्सर नहीं दो जून के निवाले
इरादों  में ईमान, आँखों में पानी रखों,

सिलसिला शह और मात पर जारी रहेगी
मुन्सिफ़ के कशीदाकारी पर मुख्तारी रखों।
                             ©पम्मी सिंह'तृप्ति..



अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...