Oct 25, 2017

लर्जिश है हर शब्दों में ..,













               💮💮

मौन है गर्जन है

 रत है विरक्त है

शून्य है..

शब्द है पर खामोश है

नत है ..

हर ऊषा की प्रत्युषा भी

जब्र वक्त है ..

वक्त यहाँ बडा कम है

रमय है अब राम भी

कहाँ हो तुम

यहाँ है हम

बोझिल है हर पल भी

हैरान हूँ ..

जिंदगी की सास्वत सत्य से

कि सुनते थे जिसे रोज

अब ,बहाना बचा नहीं मुलाकात का,

पर कर्तव्यनिष्ठ है

निष्ठुर मन भी,

गीला हैं..

 मन का एक कोना

इन धूप के गलीचों में भी,

गुजरते वक्त के साये से

मौन अभ्यावेदन है कि

यूँ ही संभालें रहते हैं

रिश्तों के भ्रम को

जो तू है आसमान में

और जमीन पर मैं पड़ी,

उलझ रही हूँ

सजदों के लिए,

लर्जिश है

हर शब्दों में क्योंकि

कभी दुआ  नहीं माँगी थी

 आप के होते हुए...

जीना है ..

 हाँ जीना है बढना है

टीसते दुख के साथ

तिरोहित हो

पर हम में ही बसी हो

अभ्यंतर,अभ्यंतर,अभ्यंतर..।

                                      ©पम्मी सिंह... ✍ 

#काव्य,#कविता,#शब्द,#माँ

47 comments:

  1. आदरणीया पम्मी जी प्रणाम बहुत ही प्रसन्नता हो रही है आपको देखकर अपनी नई ,कोमल, मर्मस्पर्शी रचना के साथ ब्लॉग पर दोबारा। आपकी कमी हमें बड़ी खल रही थी शुभ आगमन।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  2. माँ की स्मृति में लिखी गई आपकी ये रचना ही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है उनको, आपकी ओर से!!! दुःखी ना रहें, माँ हमेशा अपने बच्चों को खुश देखकर ही खुश होती है । आपने कलम उठाई और सुंदर सृजन हुआ, ये भी माँ का ही आशीष है पम्मी बहन !
    सादर, सस्नेह....

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  3. वाह्ह्ह....लाज़वाब...बस लाज़वाब रचना पम्मी जी।
    आपकी लेखनी के हर शब्द के आगे हम निःशब्द है।
    सुंदर👌👌

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  4. मातृशोक से उबरने के लिए आपकी लेखनी से निकले शब्दों में सिहरन ( लर्ज़िश ) का एहसास अत्यंत मार्मिक है। वक़्त के निज़ाम में हम सब बेबस हैं। यही नियति है कि उसके फ़ैसले को स्वीकारा जाय। आपकी पुनः सक्रियता का हार्दिक स्वागत है। बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  5. निसंदेह क्षति अपूरणीय है....
    माता तो सर्वोपरि है....
    कठिन है भुला पाना
    पर..कर्म तो विवशता है
    करना ही होगा...
    सच में सखी लिख नहीं पा रही मैं
    शब्दों ने साथ छोड़ दिया है
    माँ के बाद... आप भी माँ है
    सम्हालिए स्वयं को
    सादर

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  6. शून्य है
    शून्य हैं
    शून्य से
    शुरु किये
    शून्य तक
    आप हैं
    हम हैं
    शून्य हैं ।

    आईये फिर से शुरु करें शून्य से ।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद, सर।

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  7. धरती पर माँ की जग़ह कभी कोई नहीं ले सकता
    आपकी रचना में आपका अपनी माँ के प्रति लगाव व अपनपन्त्व भरपूर झलक रहा है ज्ञात हो रहा, है कि किसी को खोने का दर्द क्या होता है।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  8. धरती पर माँ की जग़ह कभी कोई नहीं ले सकता
    आपकी रचना में आपका अपनी माँ के प्रति लगाव व अपनपन्त्व भरपूर झलक रहा है ज्ञात हो रहा, है कि किसी को खोने का दर्द क्या होता है।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  9. आदरणीय पम्मी बहन -- माँ की पुण्य स्मृति को नमन करते शब्द मन के गलियारों के सन्नाटे हैं !!!!! माँ की कमी कोई पूरा नहीं कर सकता | पर माँ हमारे संस्कारों के रूप में हमेशा हमारे भीतर रहती है | जीवन के शाश्वत सत्य से कोई आज तक मुंह नहीं मोड़ सका है | निशब्द हूँ और भावुक भी | आपको सहस के साथ फिर से जुटना होगा -----कर्तव्य - निर्वहन के लिए !!!!!!!!!!!!सस्नेह ------

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  10. जिंदगी की सास्वत सत्य से

    कि सुनते थे जिसे रोज

    अब ,बहाना बचा नहीं मुलाकात का,

    पर कर्तव्यनिष्ठ है
    सही कहा पम्मी जी! यही शाश्वत सत्य है ।कल्पना भी न की हो जिसके बगैर जीवन के एक पल की भी ,पर जीना होता है ,सब उत्तरदायित्व निभाने होते हैं....अपने की कमी हमें मजबूत बना जाती है....क्योंकि जीवन में अब हम उसके बगैर होते हैं.....
    बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना.....


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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  11. http://vishwamohanuwaach.blogspot.in/2014/01/blog-post_6980.html
    निःशब्द समर्थन।

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी ये रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 27 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  13. मार्मिक रचना

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  14. आदरणीय पम्मी जी की यह अप्रतिम बेहद संवेदनशील और उच्च कोटि की रचना पढकर, खुद अस्वस्थ होते हुए भी, कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पाया। कुछ सत्य तिरोहित होकर भी सदा प्रज्वलित रहते हैं और ताउम्र टीसते हैं बिंधते हैं, अभ्यांतर.....।

    आज मेरी पत्नी ICU में है और सर्वथा मन की विकल भावना प्रकट हो सामने बैठ गई है।

    साधुवाद। मेरी शुभकामनाएँ व आशीष।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।
      आप व्यथित न हो सर..जल्द ही आपकी पत्नी स्वास्थ्य होंगी
      अनेक शुभकामनाएँ आप दोनों को।

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  15. संवेदनशील रचना...

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  16. लाजबाब प्रस्तुति पम्मी जी। सही में माँ तो माँ ही होती हैं बस।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  17. है जन्म अंनिश्चित मृत्यु शाश्वत सत्य है,
    नहीं कुछ भी स्थिर सब अनित्य है।
    मृत्यु ने मारे सबके मान
    पशु पक्षी क्या इंसान
    सभी विवश है उसके आगे
    निर्बल और बलवान।
    हृदयस्पर्शी रचना।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  18. उलझ रही हूँ

    सजदों के लिए,

    लर्जिश है

    हर शब्दों में क्योंकि

    कभी दुआ नहीं माँगी थी

    आप के होते हुए...

    शब्द शब्द वेदना और आंतरिक पीड़ा का मार्मिक संसार रच दिया आपने। बहुत ह्रदयस्पर्शी रचना। दिल को छूती हुई।

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  19. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/10/41.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  20. इस मौन से ... जीवन के शाश्वत सत्य से स्वयं ही साक्षात्कार करना होता है ... सब कुछ रहता है यहीं पर कुछ रिक्त होता है ... किसी का न होना एक खाली एहसास को साथ ले के चलता है जो केवल उसका होता है ... तीस जो रहती है निरंतर ... बहुत संवेदनशील रचना ...

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    1. आपके भाव भीने शब्दों से अभिभूत हूँ..
      धन्यवाद।

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  21. लाजवाब प्रस्तुति , निशब्द

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  22. सुंदर भावमय अभिव्यक्ति ... बधाई

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  23. गीला हैं..

    मन का एक कोना

    इन धूप के गलीचों में भी,

    गुजरते वक्त के साये से

    मौन अभ्यावेदन है कि

    यूँ ही संभालें रहते हैं

    रिश्तों के भ्रम को

    जो तू है आसमान में

    और जमीन पर मैं पड़ी,

    उलझ रही हूँ
    बहुत सुंदर !! अप्रतिम प्रस्तुति

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  24. माँ की दुआएँ हमेशा साथ रहतीं हैं ! खूबसूरत प्रस्तुति !

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    1. आपका सकारात्मक विचार स्वागतयोग्य है.

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  25. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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    1. आपका सकारात्मक विचार स्वागतयोग्य है.

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  26. आदरणीया /आदरणीय, अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह अवगत कराते हुए कि सोमवार ०६ नवंबर २०१७ को हम बालकवियों की रचनायें "पांच लिंकों का आनन्द" में लिंक कर रहें हैं। जिन्हें आपके स्नेह,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है। अतः आप सभी गणमान्य पाठक व रचनाकारों का हृदय से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया इन उभरते हुए बालकवियों के लिए बहुमूल्य होगी। .............. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"



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अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...