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Jun 27, 2016

जो मिली वज़ा थी...

जो मिली वज़ा थी...

बस एक चुप सी लगी है...

जो मिली वज़ा थी

जो मिली बहुत मिली है,

बस एक बेनाम सा दर्द गुज़र कर

हर लम्हो को अपने नाम कर जाता,

सुकूत हि रिज़क बनी है

पर इक जिद्द सी मची है

ज़फा न होगी अब खिज़ा, हिज्र की

बस एक चुप सी...
                
                ©पम्मी

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...