Sep 16, 2017

तफसील है ये लफ्ज़...







पन्नों पे तख़य्युल के अक्सों को उकेर कर देखो ,
कमाल है, इन अल्फाज़ों में ,
जो कई ज़िंदगी के सार लिख जाते हैं..,
रह कर इन हदों में
लफ्ज़ दिखा जाते .. कई सिल - सिले,

रखती हूँ, 
अल्फाजों में खुद का इक हिस्सा
तो निखर जाती है ख्यालों की ताबीर..,

तफसील है ये लफ्ज़, अख्यात जज्बातों का
शउर वाले जबान रख कर सफ्हों पर बिखर जाती..

अल्फाज़ है तर्जुमानी की, 
सो स्याही के सुर्खे-रंग को हिना कर देखों..

लहजे तो इनके असर होने में हैं,
हमनें तो बस आज लिखा है..
इन सफ़हे-आइना पर,

 क़मर आब की जिक्र कर
तुम अपना कल लिख देना
           ..                  © पम्मी सिंह

तख़य्युल- कल्पना, तफसील -विस्तृत, क़मर-चांद


22 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

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    1. हार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।

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  2. लफ्ज़ दिखा जाते .. कई सिल - सिले,....
    ....तख्खयुल का तफसील तराना!

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    1. हार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।

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  3. शुभ प्रभात..
    एक बेइन्तहां खूबसूरत नज़्म
    सादर

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  4. कमाल की लेखनी बेहद खूबसूरत अंदाज। जैसे लिखने वाले ने अपना प्यारा सा हृदय उकेड़ कर सामने रख दिया है।
    आदरणीय पम्मी जी अनंत बधाई।।।।।।

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    1. हार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।

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  5. वाह ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. हार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।

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  6. प्यारी नज़्म
    मन को भा गई

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  7. आदरणीया पम्मी जी आपकी नज़्म एक पहेली-सी सुलझती लगती है।
    आपने इतने नाज़ुक जज़्बात उड़ेले हैं कि दिल शिद्दत से महसूस करता है और सुकूं के लिए फिर पढ़ता है एक तसव्वुर को।
    बेहद संजीदा प्रस्तुति।
    आपको बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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  8. बेहद खूबसूरत शब्दों से सजी गहरे भाव लिए आपकी रचना पम्मी जी।

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    1. हार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।

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  9. बहुत ही शानदार और खूबसूरत रचना की प्रस्‍तुति। बेहद पसंद आई। इसके भाव बहुत ही सुंदर हैं।

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  10. बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना...
    सुन्दर ,सार्थक प्रस्तुति...
    लाजवाब..

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    1. प्रोत्साहन देती आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार।

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  11. खूबसूरत शब्द बेहद खूबसूरत अंदाज

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  13. रखती हूँ,
    अल्फाजों में खुद का इक हिस्सा
    तो निखर जाती है ख्यालों की ताबीर..,
    आत्मबैरागी मन का सुंदर संवाद -- सुकुनेदिल के लिए लफ्जों में खुद को उतारना ही सबसे बड़ी ईमानदारी है | कोमल शब्दावली से सजी रचना --प्रिय पम्मी जी |

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