Jul 15, 2017

न जाने क्यूँ पेश आती..


 न जाने क्यूँ पेश आती..


कभी हमें भी यकीन था..,पर कभी-कभी

जिंदगी न जाने क्यूँ पेश आती है

अजनबियों की तरह

इन आँखों में बसी  ख्वाबों के, मंजर 

अभी बाकी है

पीछे रह गए तमाम हसरतों के, अन्जाम

अभी बाकी है

वो क़हक़हा जो ठिठकी हैं दरख्तों पर,उनके 

खिलने की अब बारी है

जुस्तजू हैं , सबकुछ में से कुछ के पाने की

शनासा  हूँ कि,
मैं हूँ छोटीसी लहर

छोटी लहरों पर ही, पड़ते हैं पहरे और

जिन्दगी की ज़ोर - हवा हैं कायम..

पर मेरी फसाने की, मनमानी 

अब भी बाकी है
                                       ©पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️                                


29 comments:

  1. वो क़हक़हा जो ठिठकी है दरख्तों पर,उनके

    खिलने की अब बारी है

    और

    पर मेरी फसाने की, मनमानी

    अब भी बाकी है..
    बहुत उम्दा! और बेनजीर नस्ल के ज़ज्बात!

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  2. कभी हमको भी यकीन था..,पर कभी-कभी

    जिंदगी न जाने क्यूँ पेश आती है

    अजनबियों की तरह

    इन आँखों में बसे ख्वाबों के, मंजर

    अभी बाकी हैं

    पीछे रह गयी तमाम हसरतों का, अन्जाम

    अभी बाकी है

    वो क़हक़हा जो ठिठका है दरख्तों पर,उसके

    खिलने की अब बारी है

    जुस्तजू है, सब कुछ में से कुछ के पाने की

    शनासा हूँ कि,

    छोटी लहरों पर ही, पड़ते हैं पहरे और

    जिन्दगी की ज़ोर - हवा है कायम..

    पर मेरे फसाने की, मनमानी

    अब भी बाकी है..

    मात्रा की कुछ कमी खटक रही थी, एक बार अब पढ़कर देखिये

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी एवं सुझाव हेतु आभारी हूँ.

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  3. बहुत खूबसूरत रचना

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी हेतु आभारी हूँ.

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  4. सुंदर रचना पम्मी जी ।

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  5. कभी हमको भी यकीन था..,पर कभी-कभी

    जिंदगी न जाने क्यूँ पेश आती है

    अजनबियों की तरह

    इन आँखों में बसी ख्वाबों के, मंजर

    अभी बाकी है

    पीछे रह गए तमाम हसरतों के, अन्जाम

    अभी बाकी है
    बहुत ही खूबसूरत एहसास।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  6. बहुत सुंदर रचना आपकी पम्मी जी👌👌

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  7. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 18 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. छोटी लहरों पर ही, पड़ते हैं पहरे और

    जिन्दगी की ज़ोर - हवा हैं कायम..

    पर मेरी फसाने की, मनमानी

    अब भी बाकी है

    वाह ! ,बेजोड़ पंक्तियाँ ,सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।"एकलव्य"

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  10. बहुत ही सुन्दर....
    लाजवाब रचना.पम्मी जी!

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  11. आदरणीय पम्मी जी आपके ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ -- बहुत अच्छा लग रहा है आपकी रचना अच्छी लगी -----

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    1. जी, हार्दिक धन्यवाद आदरणीया,
      रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  12. बहुत सुन्दर मार्मिक रचना। बधाई पम्मी जी। आदरणीय अनीता जी की पहल भी अनुकरणीय है।

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  13. बहुत सुन्दर मार्मिक रचना। बधाई पम्मी जी। आदरणीय अनीता जी की पहल भी अनुकरणीय है।

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  14. ठिठके हुए कह्कानों का खिलना बाकि है ...
    बहुत ही खूबसूरत सोच से उपजे भाव ... कमाल की नज़्म ...

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  15. वाह ! सचमुच ज़िंदगी कभी कभी अजनबियों की तरह पेश आती है ! बहुत ही खूबसूरत सृजन ! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  16. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 13 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया..

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